'शांत झील , तनहा मैं , दूर किनारा ,
दो चार दांव लगाता हूं, इसी बहाव में प्यारा।
शोर दुनिया का है दूर, सिर्फ लहरों का संग,
मंजिल नहीं है कोई, बस चलता रहता हूं धारा के संग।
आसमानी नीलापन, सीने में समेटे हुए,
खुद को ढूंढता रहता हूं, इस सफर में खोए हुए।
दो चार दांव लगाता हूं, इसी बहाव में प्यारा।
शोर दुनिया का है दूर, सिर्फ लहरों का संग,
मंजिल नहीं है कोई, बस चलता रहता हूं धारा के संग।
आसमानी नीलापन, सीने में समेटे हुए,
खुद को ढूंढता रहता हूं, इस सफर में खोए हुए।